36 बड़े होने पर समिधा इन सब बातों को लेकर बहुत हँसती थी और सारांश को बताती कि अब ऐसा लगता है जैसे हम कोई प्रेमी-प्रेमिका हों और आँखों के इशारे से एक-दूसरे के मिलन-स्थल के बारे में सांकेतिक शब्दावली का प्रयोग करते हों | तब तक दोनों अनजान और मासूम थीं, उन्हें तो बस खेलने में रमना आता था | हाँ, घर-परिवेश से अब परिचित होने लगीं थीं | भविष्य कुछ होता है, इसके बारम्बार दोहराए जाने पर कभी-कभी उसके बारे में भी दोनों के बीच अर्थहीन चर्चाएँ होतीं, फिर विचारों के गुब्बारे हवा में उड़ जाते और वे