"अति का भला न बोलना अति की भली न चूप"---- इसकी अर्धाली अति का भला न बोलना पर तो ऋषि, मुनि ,संत, महात्मा, दार्शनिक ,राजनेता ,समाज सुधारक सभी ने जोर दिया है। घर परिवार मित्र मंडली सभी स्थानों पर अधिक बोलने पर रोक लगाई जाती है परंतु इसकी दूसरी अर्धाली "अति की भली न चूप "पर किसी का ध्यान ही नहीं गया या फिर इसको समझना किसी ने आवश्यक नहीं समझा किं अतिका बोलना जितना हानि प्रद या कष्टदायक हो सकता है शायद उससे अधिक कष्टदायक अति की चूप भी हो सकती है । साहित्य में अनेक प्रकार के व्यंग