क्षणभर - भाग-२

  • 5.4k
  • 1.9k

क्षणभर (भाग-२)२४.इस वर्षइस वर्षविचार उखड़ेआँधियां चलींप्यार की दो-चार बातेन हुयीं,दो-चार छूट गयीं।उनसे हुयी मुलाकातयाद आयी,बीते समय की चिट्ठीफिर पढ़ ली,ईश्वर निर्मित चाहहमारे साथ हो ली,लिखा गया हर शब्दमन में उभर आया,बीता जीवन झरनों सा बनशीतल बन गया,सुख की आभापूर्णतः इंद्रधनुषीय हो गयी।प्रकरण युद्ध कारेगिस्तानी धूप सातपाता रहा।जीवन की अवधिभूकम्पों में दबती,आँधियों में उड़तीदुर्घटनाओं में गिरती,युद्धों में कटतीबाढ़ में डूबतीझगड़ों में अटकती,हँसते-खेलते हुएत्योहार भी मना लेती।२५.विछोहसन्ध्या के विहग सी वहबैठ गयी होगी,किसी अनजान डाल पर।जो मुस्कान मेरे लिए सुरक्षित थीवह किसी और की हो चुकी,कोमलता उसकीकिसी क्षितिज पर अटक गयी।उसके हाथ की रोटीरास्ते भर ताजी रही,उसका दिया प्रसादपोटली में बँधा,ईश्वरीय आभास देता