क्यों हरिहर, तुम अपने बेटे को क्या सिखा रहे हों ? जिस दिन तुम उस बहनजी को लेकर आये थे, मुझे समझ जाना चाहिए था कि तुम्हारे इरादे कितने नेक हैं। तुम्हारा इस स्कूल में आना ही एक सोची-समझी चाल हैं। मोतीलाल हरिहर को सुनाया जा रहा था। क्या बात! कर रहे है, सरजी, मैं गरीब जिसका सारा दिन रोज़ी -रोटी कमाने में निकल जाता हैं, उसके पास इतना समय नहीं कि वो कोई जालसाजी कर सके। हरिहर ने सफ़ाई देते हुए धीमी आवाज़ में कहा। तो फिर तुम्हारा सपूत क्या नए कारनामे कर रहा हैं ? अब यह मत