तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग ९

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71. संत जी नर्मदा नदी के तट पर एक संत अपने आश्रम में रहते थे। उन्होंने अपने आश्रम को नया स्वरूप एवं विस्तार करने की इच्छा अपने एक व्यापारी षिष्य को बताई उस षिष्य ने अपनी सहमति देते हुए उन्हें इस कार्य को संपन्न कराने हेतु अनुदान के रूप में अपनी दो हीरे की अंगूठीयाँ भेंट कर दी। यह देखकर संत जी प्रसन्न हो गये और उन्होंने दोनों अंगूठियों की सुंदरता को देखते हुए उन्हें संभालकर अलमारी में रख दी। एक दिन एक भिखारी जो कि अत्यंत भूखा एवं प्यासा था