तर्ज़नी से अनामिका तक - भाग १

  • 8.9k
  • 3.6k

आत्मकथ्य नवनिर्माण जीवन में मंथन से अनवरत् सृजन सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और मान-सम्मान प्राप्त करने हेतु मानव कर रहा है सतत् प्रयत्न जीवन में धर्म से कर्म बनाता है कर्मवीर मोह-माया, दुख और सुख हैं हमारी छाया, जीवन रहे व्यस्त निरन्तर रहे सृजनशील और रहे प्रयासरत् धैर्य सहित आत्म-मंथन में ऋतुओं का आगमन और निर्गमन होता ही रहेगा और मानव जीवन की दिशा प्राप्त करता ही रहेगा। जीवन का आधार मेहनत, ईमानदारी, लगन, तप, त्याग और