ये उन दिनों की बात है - 31

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सागर रूठा हुआ था, क्योंकि तब जब मैं उसकी आहट सुनते ही बालकनी में आ खड़ी हुई थी, उसने नजरें उठाकर मुझे देखा भी नहीं था | मैंने इधर-उधर नज़रें बचाकर उसपर गुलाब का फूल फेंका लेकिन उसने अनदेखा कर दिया था | हे भगवान!!!! इतना गुस्सा!!!! खैर जो भी हो!! अपने सागर को मैं मना ही लूँगी | मैं यूँ ही उसके घर पहुंची पर उस वक़्त वो घर पर नहीं था | दादी केर-सांगरी का अचार बना रही थी | अरे दिव्या बेटा!! जरा रसोई में से मसाले के डिब्बे तो लेकर आ | जी दादी!! अभी लाई