कजरी - 4

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अध्याय - 4कजरी सब छोड़ कर शहर तो आ गई थी पर ये जगह उसके लिए बिल्क़ुल अनजान थी।वो इस शहर में अपनी माँ से बिछड़े बच्चे की तरह थी,जो इस भीड़ में कहीं खो गया था।कजरी रेल्वे स्टेशन पर दो दिन तक बैठी रही उसे नहीं पता था कि वो कहाँ जाए ।' ऐ लड़की में कल से देख रहा हूँ तू यहाँ क्यों बैठी है यहाँ ऐसे नहीं बैठ सकते ?' स्टेशन मास्टर ने कहा।' मेरा यहाँ कोई घर नहीं है बाबा '। कजरी ने रुआसे होकर कहा।' तो मैं क्या करुँ तुम यहाँ नहीं बैठ सकती, तुम्हें