गुनाहों का देवता - 17

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भाग 17 सुधा आयी, सूजी आँखें, सूखे होठ, रूखे बाल, मैली धोती, निष्प्राण चेहरा और बीमार चाल। हाथ में पंखा लिये थी। आयी और चन्दर के पास बैठ गयी-'कहो, क्या कर आये, चन्दर! अब कितना इन्तजाम बाकी है?' 'अब सब हो गया, सुधा रानी! आज तो पैर जवाब दे रहे हैं। साइकिल चलाते-चलाते पैर में जैसे गाँठें पड़ गयी हों।' चन्दर ने कार्ड फैलाते हुए कहा, 'शादी तुम्हारी होगी और जान मेरी निकली जा रही है मेहनत से।' 'हाँ चन्दर, इतना उत्साह तो और किसी को नहीं है मेरी शादी का!' सुधा ने कहा और बहुत दुलार से बोली, 'लाओ,