नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 22

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22 अब लगभग शाम के सात बज रहे थे | सूर्यदेव थके-माँदे अपने निवास की ओर प्रस्थान करने के लिए कदम बढ़ा चुके थे | कहीं कहीं उनके अवशेष दिखाई दे रहे थे, गोधूलि का झुटपुटा वातावरण में पसरने लगा था | लगभग दसेक मिनट में ही झाबुआ का विस्तार पाकर गाड़ी किसी दूसरी दिशा की ओर मुड़ गई | सब चुप थे और वातावरण के अंधकार में घिरते हुए उस अंधकार को अपनी-अपनी दृष्टि से नापने का प्रयत्न कर रहे थे | अपने-अपने विचार, अपनी-अपनी सोच ! गाड़ी में बैठे हुए मुसाफ़िर कई---जिनकी मंज़िल एक –चिंतन भिन्न ! एक