मिड डे मील - 8

  • 5.6k
  • 2.1k

8 अब हरिहर रोज़ कुछ न कुछ नया बनाकर अपने बच्चों के डिब्बे में देने लगा। केशव और मनोहर खुद भी खाते और अपने दोस्तों को भी खिलाते थे । हरिहर के हाथों में स्वाद हैं। बच्चे खुश होकर खाते थे । जब एक दिन केशव अपने डिब्बे का कौर अपने दोस्त शम्भू को खिला रहा था। तभी उसकी पालक की रोटी का टुकड़ा किसी ने उसके हाथ से लेकर अपने मुँह में डाल लिया। उसने सिर उठाकर देखा सामने रघु खड़ा था। वह ख़ुशी से हैरान हों गया। रघु तू भी यही पढ़ता हैं, पर कभी दिखा क्यों नहीं? केशव ने उसे गले लगाते हुए पूछा। बस अभी दाखिला हुआ है मेरा। माँ गुज़र गयी थीं। बापू ने नानी के पास भेज दिया था। वो खुद बीमार रहती थीं और मामी उन्हें ठीक से नहीं रखती थीं तो वह मुझे कैसे रख पाती। बस वापिस आ गया और बापू ने इस स्कूल में डलवा दिया। हाय ! तेरी माँ भी गुज़र गई, मेरी माँ भी गुज़र गई भाई। अब हम दोनों एक जैसे हों गए। केशव ने रघु का हाथ पकड़कर कहा। नहीं, हम दोनों एक जैसे नहीं हों सकते। तू कहना क्या चाहता हैं? यही कि मैं तुझसे एक कक्षा आगे हूँ। रघु ने हँसते हुए कहा। केशव भी हँसते हुए बोला, पर हमारी उम्र तो बराबर है, हाँ अगर तू फेल हों जाएगा फिर हम बराबर हों जाएंगे। केशव ने भी फ़टाक से ज़वाब दिया। तू नहीं सुधरेंगा याद है न, कितनी मस्ती करते थे , हम दोनों। तू स्कूल से खाना क्यों नहीं खाता? रघु ने सवाल