स्वीकृति - 7

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स्वीकृति अध्याय 7 उस बड़े और घने वृक्ष की पत्तियों के बीच से अस्त होते सूरज की झिलमिलाती रोशनी उसके चेहरे पर गिर रहे थे. संध्या हो रही थी, परंतु शायद सूरज के इन झिलमिलाती किरणों का इस तरह से उसके चेहरे पर गिरना उसे गवारा नहीं हुआ. अतः वह झुंझलाते हुए अपने जेब से रुमाल को निकालता है और अपने चेहरे को उससे ढक कर वापस आंखें मूंदे हुए बेंच पर लेट जाता है . शहर के बीच में स्थित इस पार्क के बेंच पर लेटा हुआ यह जो शख्स है- वह संदीप ही है . आज कई दिनों