बिनु पानी सब सून

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प्रिय दीदीचौंक गई न? तुमने तो कभी सोंचा तक नहीं होगा कि मैं तुम्हें पत्र लिखूँगी। पर एक बात शायद भूल गई तुम, या शायद जान-बूझ कर भुला दिया कि मैं सदा की स्वार्थी रही हूँ... आज भी मेरा स्वार्थ ही सामने आ गया है जो तुम्हें पत्र लिखने बैठी हूँ। जीवन में पहली बार तुम्हें पत्र लिख रही हूँ और पहली ही बार अपने बीच के रिश्ते की गरिमा को उसी दंभ से नकार नहीं पा रही अतः समझ में ही नहीं आ रहा कि बात को शुरू कहाँ से करुँ। चलो, बिल्कुल ही शुरू से प्रारंभ करती हूँ।