उजाले की ओर---संस्मरण

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उजाले की ओर---संस्मरण ------------------------ स्नेही मित्रों ! सस्नेह नमस्कार जीवन कहानियों से भरा पड़ा है --नहीं ,केवल मेरा ही नहीं आपका भी --यानि सबका ! उस दिन की बात है --अरे हाँ, ,आपको कैसे पता भला किस दिन की ? मैं बताती हूँ न ,ध्यान से सुनना ! कॉलेज में पढ़ाने वाली अम्मा की कितनी सारी मित्र थीं ,अम्मा को सब खूब स्नेह करतीं कारण था अम्मा का सरल ,सीधा होना उनके पास जो कुछ भी हो ,पहले सबका है ,बाद में उनका उनकी सहेलियाँ जहाँ उनको प्यार करतीं ,वहीं उनसे दुखी