उजाले की ओर - संस्मरण

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उजाले की ओर ---संस्मरण ------------------------- स्नेही मित्रो ! सस्नेह नमस्कार बेतरतीब सी ज़िंदगी को तरतीब में लाने के लिए न जाने कितने -कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं ,फिर उन्हें सुखाने पड़ते हैं और फिर सेकने या फिर तलने !तभी तो स्वादिष्ट पापड़ का स्वाद लिया जा सकता है | न--न --दोस्तों मैं आपसे सचमुच इतनी कसरत करने के लिए नहीं कह रही हूँ लेकिन आप सब ही इस बात से भली-भाँति परिचित हैं कि बिना हाथ-पैर,दिमाग हिलाए कुछ नहीं मिलता | यह जीवन का अंदाज़ है यानि शैली !कोई भी मनुष्य --अरे ! मनुष्य ही