नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 11

  • 5.4k
  • 2k

11 समिधा सोच रही थी करुणा का पात्र यह आदिवासी नहीं बल्कि वह व्यक्ति है जो रात-दिन घुटन में साँस लेता है | वास्तव में अपनी उलझनों में फँसा वह हंसना, मुस्कुराना तक भूल गया है, सहज ठहाकों की बात तो उसके लिए चाँद पकड़ने जैसी हो चुकी है | समिधा ने एक युगल को बाज़ार के बीचोंबीच खुलकर हँसते हुए देखकर सोचा | उसे उनका यूँ खुलकर, खिलकर हँसना बहुत अच्छा लग रहा था | गाड़ी सड़क पर चलते हुए लोगों को छोड़कर आगे बढ़ चुकी थी पर समिधा के मस्तिष्क में खिलखिलाते युगल की तस्वीर छपकर रह गई