नई जगह नए लोग,खामोश हूं में बोल रही खामोशियाँ।चार दीवालों से निकलकर चली जैसलमेर के रेगिस्तान में,चार दिन के इस सफर में जाने पूरा जहा जी आई में।।रेगिस्तान की इस जमी पर रेत के सिवा ना दिखा।इस रेत में भी मिला खूबसूरत सा सुकून ।।4 अपनो के साथ गई थी,40 को अपने बनाकर लौटी हूं।एक नए सफर में कुच नए दोस्त बनाकर लौटी हूं।।सबकी अपनी सोच थी, सबका अपनी पहचान थी।फिर भी हम सबने मिलकर बनाई एक नई पहचान थी।।किसी ने चुप रहे कर अपना अंदाज बताया, किसी ने