इतना कहकर मैंने फोन का पिछला भाग उनको देकर और निकल गया। और छत की दहलीज पर जाकर कपड़े डालने लगा। फिर उन्होंने काफी देर तक बात की उनसे और बाद में दादी जी ने आवाज लगाई और वो चली गई। फिर उस दिन से मैंने कभी चाची को फोन नही दिया और जब भी आता मैं फोन उठा लेता और शुरू होता बात करने के लिए बस बात करते करते एकान्त की ओर चला जाता था।घर से निकल कर कब फुलवाड़ी की ओर चला गया पता ही नही। कब खेत का रुख हो जाए पता ही नही कब मैं