त्रिजटा बोली

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रावण के जाने का आभास होते ही सीता की आँखों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी। अभी तक जिस संयम और दृढ़ता से अपने मन को सम्भाल कर रखा था, एकान्त मिलते ही वह आँसुओं के रूप में बह निकला। फिर मन में सहसा खयाल आया कि एकान्त भी कहाँ है? चारों ओर रावण की प्रहरी राक्षसियों का घेरा, उनका भयानक अट्टहास और उनकी अजीब सी भाव भंगिमाएं, मन की निराशा को और भी घनघोर किए जा रहीं हैं। हृदय में यही इच्छा उत्पन हुई कि काश! यह अशोक वाटिका