ये उन दिनों की बात है - 26

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मैं तुरत-फुरत से तैयार होकर सीधा कामिनी के घर पहुंची और उसे सागर की लिखी हुई वो चिट्ठी दिखाई |अरे वाह!! मेरी लाडो!! यानी आग दोनों तरफ ही बराबर लगी हुई है | इधर तू उसके लिए तड़प रही है, उधर वो तेरे लिए तड़प रहा है | मेरा मतलब "जीजाजी" और कामिनी हँस दी |क्या कामिनी!! तू भी ना!! उसके सागर को जीजाजी बोलते ही शर्मा सी गई थी मैं |आय! हाय! मन में तो लड्डू फूट रहे हैं |अच्छा, अच्छा, अब ये बता आगे क्या!!आगे क्या, जिस तरह जीजाजी ने तुझे चिट्ठी लिखी उसी तरह तू भी उन्हें