(भाग बारह) यह तो तय है कि बेटों से मुझे न तो अपनापन मिलेगा न सम्मान। वे मुझे देखकर खुद भी कुढेंगे और मुझे भी कुढाते रहेंगे। वे न अतीत से मुक्त हो पाएंगे न मुझे मुक्त होने देंगे, तो मैंने फैसला कर लिया कि मैं उनसे आरे सम्बन्ध तोड़ लूंगी। उनकी खुशी के लिए उनके बेहतर जीवन के लिए। उनके अनुसार मैंने उनका बचपन में साथ नहीं दिया तो वे मुझे बुढापे में सहारा नहीं देंगे। जाओ मेरे बेटों, मैंने तुम्हें आज़ाद किया। अपना दूध भी बख़्श दिया। तुम लोगों से कभी कोई सहारा नहीं माँगूँगी। मैं तो यही