हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग दस)

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(भाग दस) मैंने अपने पति के आकर्षक व्यक्तित्व में छिपे कुरूप आदमी को देखा था, इसीलिए मेरा मन उससे विरक्त हो गया था। मैं देह की कुरूपता को बर्दास्त कर सकती थी पर मन की कुरूपता मुझे असह्य थी |मैं उसे देवता समझती थी पर एक दिन अचानक ही उसका मुखौटा उतर गया।   मैं विश्वास ही नहीं कर सकी थी कि यह वही आदमी है, जिसे मैं प्यार करती थी  |मेरा पति इतना दंभी और घिनौना कैसे हो सकता है ?मैं फूट-फूट कर रोई, कई दिन तक रोती ही रही |वह मेरे रोने का कारण नहीं समझ पाया |उसे