हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग नौ)

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(भाग नौ) बेटे के आने के बाद जैसे गड़े मुर्दे फिर से जिंदा होकर सताने लगे थे। कितनी मुश्किल से खुद को संभाला था, जिंदगी में आगे बढ़ी थी। अब जैसे फिर उसी मोड़ पर आ खड़ी हुई थी, जहां से कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। बेटा उसके बाद भी कई बार आया और हर बार दुःखी करके गया। मैं ममता में उसके साथ कठोर नहीं हो पा रही थी और वह उसका बेजा फायदा उठा रहा था। मेरी लाख मिन्नतों के बाद भी उसने छोटे बेटे की तस्वीर नहीं दिखाई। मेरी छोटी बहन ने कोशिश करके छोटे बेटे से संपर्क किया