पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 17

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अध्याय ग्यारह भगवान के दर्शन अनुभव— दादी जी, आपने कहा है , हम भगवान के बारे में बहुत कम जान सकते हैं । तब क्या भगवान के दर्शन करना लोगों के लिए संभव है? दादी जी— हॉं अनुभव । किंतु हमारी भौतिक ऑंखों से नहीं । जिसका प्रकार हमारी दुनिया में हमारे हाथ-पैर हैं, वैसे तो भगवान के नहीं हैं । किंतु जब भगवान हमारी नि:स्वार्थ सेवा भक्ति से प्रसन्न होते हैं, तो वे