लड़की का हक़

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क्या कहूँ ?अब तो थक गयी हूँ मैं . जिस घर से ब्याही जाती हैं ना लड़कियाँ वहाँ से डोली उठते ही घर पराया हो जाता हैं । जिस घर पहुँचती हैं डोली वहाँ जाते ही कह दिया जाता हैं अपने घर से क्या लायी ? एक नारी की बिसात क्या हैं? बस शतरंज का खेल हैं सब अपनी अपनी चाले चलते हैं कभी इधर वाले जीत जाते हैं कभी उधर वाले . पर दोनों ही नारी को उधर वाली समझते हैं अपने पाले की नही ।