ये एक बेहद ख़ूबसूरत जगह थी। ऊंचे नुकीले पहाड़ों के बीच से टेढ़ा- मेढ़ा रास्ता बनाती झील यहां बहुत चौड़ी और खुशनुमा हो जाती थी। किनारे पर बने हुए इस सफ़ेद शांत महल ने अब एक होटल का रूप ले लिया था। इसी महल में ठहरे थे आर्यन और उसके साथ आए जयंत बर्मन। आर्यन बर्मन साहब को अंकल कहता ज़रूर था पर वो उसके साथ बराबर वालों का सा मित्रवत व्यवहार रखते थे। इस समय भी तो दोनों आमने सामने बैठे बेहद जायकेदार नीलागुल शराब पी रहे थे। बर्मन साहब आर्यन को बता रहे थे कि किस तरह हम