अविनाश, प्रज्ञा का हाथ थामे जैसे-तैसे उसके पड़ोस के घर, गिन्नी के दरवाजे पर पहुँच ही गया। उसने कई बार ज़ोर-ज़ोर दरवाजा थप थपाया...तब जाकर गेट खुलते ही एक औरत की आवाज़ आयी-अरे! प्रज्ञा इस मौसम मे तुम सब बाहर क्या कर रहे हो….आओ जल्दी से अंदर आओ!और तुरंत ही अवि और प्रज्ञा घर के अंदर चले गए। अरे! ये मोमबत्ती फ़िर बुझ गयी….प्रज्ञा अपनी टॉर्च देना ज़रा।….. वो औरत टॉर्च लेकर गयी और टेबल पर से माचिस उठाकर वहीं रखी मोमबत्ती से सजी लैंप को जलाने लगी। "नीरजा!....घर मे कोई दिखाई नहीं दे रहा कहाँ है सब? " प्रज्ञा उजाला होते ही