मेरे पिता मेरे पुण्य। सुबह सुबह ये डाकिया भला न जाने किस का खत हमारे घर पे दे गया। कितना रुकने को बोला सुना ही नहीं, हद है। लक्ष्मी(जो की श्रीकांत जी पत्नी थी। सालों पहले गुजर गई उनकी बस तस्वीर है घर पे और बहुत सी यादें ) तुम्हे तो पता हैं न मुझे पढ़ना नहीं आता। चलो छोड़ो रमन से पढ़वा लूंगा अभी जल्दी से नहाना है, फिर खाना भी बनाना है। रोज रोज देर से ऑफिस जाओ तो बड़े बाबू से रोज बहस हो जाती है। श्रीकांत ऑफिस पहुंचते ही श्रीकांत ने रमन को चिटठी