मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय पच्चीस उन्हीं दिनों हमारे परिवार पर दुखों का पहाङ टूटा । बङे मामा जी डाक विभाग में बङें बाबू हो गये थे । तार का कोर्स करके आने के बाद उनकी प्रमोशन तार क्लर्क के तौर पर हो गयी । उसके बाद उन्हें उपडाकघर का चार्ज देकर एक छोटे डाकखाने का प्रभारी बना दिया गया । अब वे सुबह साढे आठ बजे घर से जाते और देर रात गये वापिस आते । इन्हीं दिनों उनका ट्रांसफर बेहट हो गया । यह एक छोटा सा कस्बा था । मुस्लिम बहुल इलाका । छोटा सा