अंतिम भाग " मुझे भूख लगी है । मुझे भूख चढ़ाओ । नर मांस दो मुझे... " कर्णपिशाचिनी के आवाज से मानो यह शांत जंगल कांप उठा । रात के कुछ पंछी डरते हुए उड़ गए । हर्षराय विकट परिस्थिति में थे उन्होंने सोचा तो क्या अंत में इतने दिनों की साधना यूं ही व्यर्थ चली जाएगी । मन ही मन उन्होंने देवी गुह्यकाली को शरण किया । गुरु भैरवानंद की सावधान वाणी उन्हें याद आई । गुरु ने कहा था, " जितनी भी विकट परिस्थिति आए अपने दिमाग को शांत