पर्वों का लोकायत स्वरूप जीवन के निरंतर स्वीकार और परिष्कार के लिए मनुष्य ने भौतिक विस्तार के साथ ही अपना दर्शन, साहित्य जैसे मानसिक और हार्दिक उपक्रम भी किए हैं । जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति और उसके बेहतर साधनों की खोज के बाद ही मनुष्य ने जीवन के हालात के अनेक उपाधियों का आयोजन किया । पर्व ऐसे ही सांस्कृतिक रचनाशीलता के उपक्रम हैं और और जिनकी जीवन से सहज और अविच्छिन्न संयुक्ति है। पर्वों के आयोजन के अनेक उत्प्रेरक कारण रहे होंगे। आदिम समाज ने कभी क्षुधा-तृप्ति के सहभोजजन्य उल्लास, कभी देव पूजन तथा कभी ऐसे ही अन्य प्रयोजन