इधर श्रीधर अस्पताल पहुँचा और उसने अस्पताल के बाहर ही खड़े एक बुजुर्ग की रेड़ी से पहले भेलपूरी बनवाई फिर उस बुजुर्ग को पैसे देकर,भेलपूरी को अपने झोलें में छुपाया और राज के कमरें की ओर चल पड़ा,जैसे ही वो राज के कमरें में पहुँचा तो उसने देखा कि राज 'शरतचन्द्र चटोपाध्याय' का लिखा हुआ उपन्यास 'देवदास' पढ़ रही है,राज को ऐसे पढ़ते हुए देखा और श्रीधर ने टोकते हुए कहा..... अच्छा! तो शह़जादी साहिबा 'देवदास' पढ़ रहीं हैं।। अरे!श्रीधर बाबू ! आप! कब आए? राज ने चौकतें हुए पूछा.... जी! तभी जब आप अपनी प्रेमकहानी में डूबीं हुईं थीं....