अर्पण--भाग (६)

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दिनभर का समय राजहंसिनी को अस्पताल में काटना मुश्किल पड़ गया,रह रहकर वो बस बिस्तर पर करवटें ही बदलती रही,श्रीधर राजहंसिनी की हालत से वाकिफ था,उसे पता था कि जो लड़की एक जगह कभी शान्त होकर नहीं बैठ सकती,उसके लिए पूरा दिन बिस्तर पर गुजारना कितना कठिन होगा।। शाम हुई देवनन्दिनी अस्पताल आई,राज से मिलने हाथों में ढे़र से फल लेकर और श्रीधर से बोली___ श्रीधर बाबू अब आप घर जा सकते हैं,मैं रात को यहाँ रूक जाऊँगीं।। ठीक है !जैसा आप उचित समझें,मैं अब घर जाता हूँ,कल मिल जाने से पहले फिर से मिलने आऊँगा,श्रीधर बोला।। जी,बहुत अच्छा!