अर्पण--भाग (१)

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रूको...राजहंसिनी!अपने कमरे में जाने से पहले ये बताओ कि कहाँ से आ रही हो?हाँस्टल की वार्डन ने राजहंसिनी से पूछा।। जी,मैं जरा घूमने चली गई थी,राजहंसिनी बोली।। इतने रात गए तक घूमना शरीफ़ घर की लड़कियों का काम नहीं है,तुम्हें पता हैं तुम्हारी बड़ी बहन देवनन्दिनी को कुछ पता चल गया था,तो कितना कष्ट होगा उनको,हाँस्टल की वार्डन बोलीं।। जी,लेकिन अभी तो कोई रात नहीं हुई केवल सात ही बजे हैं,जी पता है कि उनको कष्ट होगा,राजहंसिनी बोली। तब भी समझ में नहीं आता तुम्हें! तुम्हारे स्वर्गवासी पिता जी सेठ हरिश्चन्द्र अग्रवाल इस शहर के नामीगिरामी बिजमैन थे,तुम्हारे ऐसे करने