उसके बाद उसकी समझ में कुछ नही आ रहा है कि वह क्या कर,े क्या न करे, कहाँ जाए? ऐसी अनुभूति हो रही है जैसे अमावस की रात हो, विस्तृत घना जंगल हो, दूर-दूर तक घुप अँघेरे के अतिरिक्त कुछ भी दृश्य न हो। वह अँधेरे में लक्ष्यहीन दिशा की तरफ बढ़ती चली जा रही है। उसके नेत्र अरसे से एक टिमटिमाते हुए दीये की लौ के लिए तरस गये हैं। आज ही दीदी का फोन आया है, पूछ रही थीं, ’’नीना कैसी हो? ठीक तो हो? अपना ध्यान रखना। चिन्ता न करना आदि.....आदि....।’’ उन्होने जितनी सरलता