मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय तैंतीस बचपन बचपन ही होता है । एकदम भोला और मासूम । दुनिया जहान की फिक्रों से बेखबर । सीधा और सच्चा । इसकी बात यूँ याद आई कि मैं चौथी कक्षा में पढती थी । मेरी कक्षा में मेरे साथ तीस लङकियाँ और पढती थी । सब अलग अलग जातियों से । उसी कक्षा में चार कुम्हारों की लङकियाँ भी पढती थी । पुष्पा , शीला , दया और क्षमा । एक बार ये चारों लङकियाँ कक्षा से अनुपस्थित रहने लग गयी । एक दिन । दो दिन । तीन दिन । एक