पलटी मार कवि से मुलाकात यशवंत कोठारी कल बाज़ार में सायंकालीन आवारा गर्दी के दौरान पल्टीमार कवि फिर मिल गए.बेचारे बड़े दुखी थे.उदास स्वर में बोले-क्या बताऊँ यार पहले एक संस्था में घुसा थोड़े दिन सब ठीक ठाक रहा लेकिन कुछ पुराने खबिड अतुकांत कवियों ने मुझ गीतकार को मुख्य धारा से अलग कर दिया .मेरी किताब को खोल कर भी नहीं देखा. साहित्य में छुआ छु त व अस्प्रश्य ता का ऐसा उदाहरण .हर प्रोग्राम में मेरा काम केवल माइक,कुर्सियों की व्यवस्था तक ही सिमित हो गया.चाय समोसे भी सबसे बाद में मिलते.एक पूंजीपति ने पूरी संस्था को जेब