बुंदेलखंड में परिनिष्ठित साहित्य रचना के साथ ही लोक साहित्य की भी समृद्ध परंपरा रही है। साहित्य के यह दोनों रूप यहां समानांतर की स्थिति में ही सहवर्ती नहीं रहे हैं बल्कि कथ्य और भाषा के अनेक अनेक प्रयोगों में उनमें परस्पर अन्तरभुक्ति है। काव्य विषय की चेतना चाहे वह शास्त्रीय परंपरा से ग्रहण की गई हो अथवा समकालीन समाज से , उसकी अभिव्यक्ति बुंदेलखंड में साहित्य के इन दोनों रूपों में हुई है । लोक रचनाकार भी उसे अपने माध्यम से व्यक्त करते रहे हैं और परिनिष्ठित रचनाकार भी । प्रायः यह मान लिया जाता है कि लोक रचनाकारों