उपन्यास भाग—१० दैहिक चाहत –१० आर. एन. सुनगरया, टाऊनशिप में साधारणत: चहल-पहल कम ही रहती है, दोपहर को तो और-घौर सन्नाटा छा जाता है। मोबाइल की वैल सुरीली होते हुये भी कर्कस ध्वनि की भॉंति सुनाई देती है। शीला के मोबाइल की वैल कब से सन्नाटा चीर रही थी; वह हाथ पोंछते-पोंछते