चोर (व्यंग्य ) नोखेलाल जी रोज ही शाम को टहलने निकलते हैं । कभी-कभी हम से उनकी मुलाकात हो जाती है । साठ की उम्र को पार करते अनोखेलाल अपने नाम को चरितार्थ करते हैं । वे आज भी विषयों को समझने में अपना सर खापाते हैं यह और बात है कि उन्हें दूसरे दिन उस विषय के बारे में उतना ही ज्ञान रह जाता है, जितना पहले दिन था । अचानक आज हमारी मुलाकात नोखेलाल जी से हो गई तमाम औपचारिक संवादों के बाद नोखेलाल ने पूछा "यह काला धन क्या होता है ?" हम