सोनमयी की दशा अत्यन्त गम्भीर थी,सभी स्थिति देखकर सभी चिंतित हो उठे,सहस्त्रबाहु तो जैसे अपनी सुध ही भूल गया था,उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था,उसकी मनोदशा को भालचन्द्र भलीभाँति समझता था और उसने उसे सान्त्वना देने का प्रयास किया, लेकिन ऐसी स्थिति में कोई भी हो जिसके ऊपर बीतती है वही समझ सकता है।। विभूतिनाथ जी ने शीघ्र ही सोनमयी का उपचार प्रारम्भ कर दिया,सभी इस कार्य में लगें हुए थे,जिससे जो बन पड़ता था वो सभी अपना अपना सहयोग दे रहें थें,जितनी भी औषधियों की आवश्यकता पड़ रही थी तो उन्हें भालचन्द्र ला रहा था,किन्तु इतने समय