अम्मा जी और फ़ौजी अंकल अब बूढ़े हो चुके थे..ईर्ष्या,काम, क्रोध, लोभ, मोह.. इन सबसे कोसो दूर..हां क्रोध और मोह अभी बाकी था और बाकी था ढेर सारा बचपना भी...बच्चे जैसे दिमाग से नही सोचते मन के निश्छल होते है..उन्हें ना सम्मान की चिंता ना अपमान का डर..बस चाहिए तो ढेर सारा प्यार...ऐसे ही अम्माजी और फौजी अंकल भी किसी साथ, किसी बहाने की तलाश थी.. देवर-भाभी-ये ऐसा खट्टा मीठा रिश्ता है जो मन से मानो तो इनसे बेहतर दोस्त और कौन हो सकता है?...और दोस्तों के साथ ज़िन्दगी तो बेहतरीन ही होती है..अब छत पर हर रोज़ हंसी ठहाका,