स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य-में ऐतिहासिकता के ब्याज से समसामयिकता का चित्रण राधारमण वैद्य श्री जय शंकर प्रसाद (1889-1937 ई0) में धकियाकर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति नहीं है, बल्कि चुपचाप सब के बाद धीरे से-अज्ञात रहकर- आगे बढ़जाने का भाव है, आरंभ से ही भावों की ससज्ज-सलज्ज स्थापना में प्रसादजी का सचेत व्यक्तित्व स्पष्ट हुआ है, फिर भी उसकी बहुमुखी प्रतिभा बहुविधि प्रकट होती रही है, वे प्रकृति और मनुष्य के सौन्दर्य को पूर्ण रूप से उपभोग्य बनाने वाले कवि हैं।(1) उनका आत्म-गौरव, देश-प्रेम और दार्शनिक दृष्टिकोण सर्वत्र प्रकट होता रहा है। वे काव्य-जगत में रहस्य रोमांस, नाटक और कहानी