केशव कृत ’विज्ञान-गीता’: परम्परा-पोषण और युग चित्रण राधारमण वैद्य केशव की काव्य-साधना कई रूपों में प्रकट हुई। केशव के मुक्तक, जहाँ शास्त्रीय रस-रीति और भक्ति क्षेत्रीय रति-रीति में सामंजस्य उपस्थित करते हैं, वहाँ उनके प्रबन्ध काव्य भी त्रिधा विभक्त हैं- 1. चरित काव्य धारा, 2. महाकाव्य धारा, तथा 3. रूपक नाटय काव्य धारा। केशव की ’विज्ञान गीता’ इसी रूपक विधा के अन्तर्गत आती है। इसमें केशव ने शुद्ध नाटय रूपक विधाा को ग्रहण न करके, इसे संवाद-बहुल काव्य का रूप दिया है, पर नाट्य की आत्म-इसमें अक्षुण्ण मिलती है। कथा का आरम्भ नाटकीय शैली में