नागमणी (संस्मरण ) - अंतिम भाग

(14)
  • 8k
  • 1
  • 3.1k

रात के लगभग दो बजे मैं अपने घर पहुंचा । घर में किसी को भी इस घटना के बारे में जानकारी ना हो इसलिए मैंने वह पात्र रखने और संभालने का जिम्मा अपने मित्र को ही दे दिया था । जाते जाते उसे सभी हिदायतें फिर से याद कराना नहीं भूला था । समय का चक्र चलता रहा और उसके वशीभूत हम भी अपनी राह चलते रहे । वही दिन और फिर वही दिनचर्या ! सुबह उठना दिन भर भटकना और फिर रजनी के सान्निध्य में निंदिया रानी के आगोश में स्वप्न लोक में विचरण करते हुए भोर तक का रास्ता