राधारमण वैद्य-भारतीय संस्कृति और बुन्देलखण्ड - 9

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समय और समाज सापेक्ष रीतिकाल राधारमण वैद्य किसी रचनाकाल के साहित्य-विवेचन में उस काल-खण्ड की दृष्टियों, शैलियों, तत्कालीन-सामाजिक रूचियों, आर्थिक दशा और राजनीतिक घात-प्रतिघात का पता चलता है। सामाजिक और राजनीतिक दशा और दिशा का बोध होता है। रीतिकाल को आचार्य शुक्ल ने विक्रमाब्द 1700 से 1900 तक माना है। इन दो सदियों तक फैले विवेच्य काल से पूर्व संवत 1600 से 1700 तक इसका प्रस्तावना काल और बादमें 1900 से 1975 विक्रमी तक उपसंहार काल कह सकते हैं। इन दिनों मुगल-साम्राज्य का पतन प्रारंभ हो गया था। यथा राजा तथा प्रजा। मुगलों की अधीनता में ही अपना हित