राधारमण वैद्य-भारतीय संस्कृति और बुन्देलखण्ड - 7

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सनकादि सम्प्रदाय, सनकुआ और सेंवढ़ा स्थान-नाम, भाषा की जीवन्त शब्दावली है, जो घिस-मँजकर रूपान्तरित होते हुए शताब्दियों तक अपना मूल्य स्थिर रखते हैं और जन-आस्थाओं के आधार बन जाते हैं, उनमें इतिहास स्थिर रहता है, जन श्रुतियाँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को यह सम्पदा सौंपती चलती हैं। सब जानते हैं कि सनकुआ सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार, जो ब्रह्मा के मानस पुत्र कहे गये हैं, की तपस्या भूमि है। असल में विन्ध्यावटी, जिसे महाभारत के वनपर्व में घोर अटवी, दारूण अटवी, महारण्य और महाघोर वन से स्मरण किया गया है, तपस्यिों के लिए विशेष आकर्षण का