राधारमण वैद्य-भारतीय संस्कृति और बुन्देलखण्ड - 2

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बाणकालीन पाराशरी भिक्षु राधारमण वैद्य जब कभी नाम रूप से एक समान दिखने वाला व्यक्ति, समुदाय या समाज के भीतर से अपने आचार-विचार में भिन्न होता है और उसकी भिन्नता की कड़ी पकड़ में नहीं आती है, तब क्रमबद्ध अध्ययन करनेवाला जिज्ञासु हैरान-सा दिखाई देने लगता है। उसे बार-बार अपने अध्ययन में शृंखला का अभाव खटकता रहता है। प्रबुद्ध मनीषी और प्रकाण्ड अध्येता डॉ0 वासुदेव शरण अग्रवाल भी अपने ’’हर्षचरित- एक सांस्कृतिक अध्ययन’’ में इसी प्रकार की एक उलझन से बार-बार जूझते नजर आते हैं। वे लिखते हैंः ’’बाण के समय में पाराशरी भिक्षुओं का ब्राह्मणों से बड़ा