एक और अफसोस

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लघु कथाकहानीकार - कमल माहेश्वरीशीर्षक- एक और अफसोस पिताजी सरकारी नौकरी में थे, उस दिन वह किसी प्रोजेक्ट पर बड़े ध्यान से कार्य कर रहे थे । मैं और मेरी छोटी बहन मस्ती में इतने डूब गए थे कि कुछ भी ध्यान नहीं रहा..... यूू तो बचपन होता ही इतना प्यारा है ना खाने की चिंता ,ना सोने की चिंता ,ना कमाने की चिंता ,न किसी और बात की चिंता जिस काम में लग गए केवल उसी में डूब गए । खेलना, मस्ती करना बेपरवाह होकर बाकी दुनिया में क्या चल रहा है हम को क्या लेना - देना। बचपन होता ही