एक परछाई तहखाने में कदमों की आहट के साथ बढ़ रही थी यह कटप्पा थे ,कटप्पा के हाथों में खाने की थाली थी दोनों तरफ सलाखें थी तहखाने में कोई शोरगुल नहीं था ,यहां पर मंद अंधेरा था ,कटप्पा आगे से दाएं और मुड़े, सामने की सलाखों के पीछे एक सक्ष अधमरी - सी हालत में जमीन पर पड़ा था ,खुले केशो ने उसके चेहरे को ढक रखा था कटप्पा उस व्यक्ति के पास जाकर रुक गया और सलाखों के नीचे से उस थाल को धीरे से उस व्यक्ति की तरफ धकेल दिया "खाना खा लीजिए "- कटप्पा ने कहा